Friday, March 20, 2009

अमृतानुभव _2


ज्ञानरूपा ,अष्टविना दया सागरा
अत्ताराविना सुवासिता ...

गर्भ नयना ,सर्व भूता गुनाधरा
पार्थाविना अखण्डता ....

तेज मुखा ,पैलू गुना अविष्टता
आकाराविना निर्गुणा.....

पुष्प ज्योतिका ,नाद वन्दिका विशाचिये
अमृताचा विशदु ....

परी दर्पणे ,न पाहने होए पाहने
ऐसा सकळ दृष्टिचा ....

नाही कसला मुळ,अविराक्त गजानना
अम्बराविना भिडे आकाशा ....

चिमनिताई ........

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